हिंदी यानि हमारी राजभाषा, जिसका महत्व साप्रंत समय मे कई विभिन्न क्षेत्रो मे हो रहा है। विज्ञापन के क्षेत्र मे हिंदी भाषा का व्यपक अनुप्रयोग हो रहा है, क्युकी यही एक ऐसी भाषा है जिसे हमारे देश मे हर जनसमूह समज सकता है।
राष्ट्रपति महात्मा गाँधी द्वारा 1917 में भरुच में सर्वप्रथम राष्ट्रभाषा के रूप में हिन्दी को मान्यता प्रदान की गई थी। पर इस राष्ट्रभाषा का प्रचार प्रसार एवं विकास का इतिहास जो है वह संघर्ष और विरोध का इतिहास रहा है शायद ही कीसी भाषा के विकास मे इतनी अड़चने उपस्थित हुई होंगी। ततपश्चात्ताप 14 सितंबर 1949 को सविंधान सभा ने एकमत से हिन्दी को राजभाषा का दर्जा दिए जाने का निर्णय लिया तथा 1950 में सविंधान के अनुच्छेद 343(1) के जरिए हिन्दी को देवनगरी लिपि में राजभाषा का दर्जा दिया गया। हिन्दी यानि हमारी राजभाषा। हमारे देश मे राजनैतिक उथल पुथल भाषाओं के प्रचार एवं प्रसार को प्रभावित करती आयी है। मुगल शासनकाल में अरबी और फारसी का वर्चस्व रहा है और ब्रिटिश काल में अंग्रेजी का। 1834 में लार्ड मैकाले के अंग्रेजी माध्यम से शिक्षा देने के निर्णय के साथ ही अंग्रेजी भाषा का वर्चस्व बढ़ने लगा। लेकिन इन सब बाधाओं के बीच भी हिन्दी भाषा युग युग से भारत की सांस्कृतिक एकता एवं राजनैतिक दृढ़ता को एक सूत्र में बांधने का प्रयास करती आ रही है।
आज के युग का जो बहुत बड़ा सत्य है वह हिन्दी भाषा के ख्यातनाम कवि 'जयशंकर प्रसाद' की 'कामायनी' प्रस्तुत पंक्तियों में बखूबी प्रगट हुता हुआ दिखाई देता है।
आज का जो दौर है वह विज्ञापन कला से ज्यादा विज्ञापन क्रांति से आक्रांत है। आज के युग हम हमारी कला हो या साहित्य, अगर हम लोगों तक प्रचार और प्रसार के माध्यम से नहीं पहुंचा रहे है तो वह कला होते हुए भी ना होने के बराबर ही है। आज की यह संस्कृति में लोगों को अपने सामर्थ्य और शक्ति से परिचित करना ज्यादा महत्वपूर्ण है। और यही कार्य सिर्फ और सिर्फ विज्ञापन के जरिए ही हो सकता है. विज्ञापन की ढेरों परिभाषाऐं है।
" विज्ञापन प्रायः मुद्रण के रूप में लोगों के सम्मुख प्रस्तुत करता है जिससे की वे उसके अनुसार कार्य करने के लिए प्रेरित हो सके। "
न्यू वर्डाई के अनुसार,
" विज्ञापन का अर्थ किसी वस्तु या तथ्य के सबंध में मुद्रित माध्यम समाचार पत्र, आकशवाणी अथवा ऐसे ही किसी अन्य माध्यम से जानकारी देना, विक्रय बढ़ाना अथवा जनता का ध्यान आकृष्ट करना है। "
विज्ञापन की विभिन्न परिभाओ के जरिए यही बात स्पष्ट होती है की विज्ञापन उत्पादन का विक्रय बढ़ाने के लिए और प्रचार-प्रसार के लिए ही है।
विज्ञापन के बारे में सही मायने में जागृति स्वतंत्रता के बाद आई। जब भारत का बहुमुखी विकास के हेतु भारत सरकार के द्वारा पंचवर्षीय योजना के अंतर्गत देश को समृद्ध बनाने के लिए किसानों, बुनकरों, गृहउद्योंगो तथा उद्योगों की वृद्धि के लिए उद्योगपतियों वैज्ञानिकों तथा तकनीशियनो को प्रोत्साहित किया गया। इसका उदेश्य देश को स्वनिर्भर बनाकर उसका सर्वांगीण विकास करना था। भारत सरकार के इस उदेश्य साकार करने में विज्ञापन का अधिक योगदान रहा है। हर क्षेत्र में अपनी वस्तुओं के क्रय-विक्रय के लिए हमे विज्ञापन का सहारा लेना पड़ा और सांप्रत समय में भी ले रहे है। आज विज्ञापन जीवन की विधा के रूप में स्थापित हो चूका है। सांप्रत समय में विज्ञापन एक कला बन चुकी है.विज्ञापन का मक़सद ही है की जिसका विज्ञापन किया जा रहा है। उसे ज्यादा से ज्यादा लोगों तक उस तरह और तरीके से पहुंचाया जाएँ की व्यापक जनसमूह उसे अपना ले और उससे मोहित हो जाएँ।
हिन्दी भाषा का व्याप बढ़ाने में बोलीवूड सिनेमा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। अब प्रश्न होता है शुद्ध हिन्दी भाषा का। क्या हमारी बोलीवूड की हिन्दी भाषा शुद्ध हिन्दी है? नहीं, यह वह हिन्दी भाषा है जिसमे अंग्रेजी हो या पंजाबी या फ़ारसी, ऐसी कई भाषाऐं है जो हिन्दी के साथ मिल चुकी है. पर अभी भी हमारी राजभाषा ही मध्यस्थ बिंदु है, जिसके ज़रिए अन्य भाषाये अपना स्थान बना रही है।
विज्ञापन माध्यम एक ऐसा साधन है, जिसके जरिए निर्माता अपनी वस्तुओं के बारे में उपभक्ता को जानकारी उपलभ्द्ध करवाता है। समाचारपत्र, पत्रिकाएँ, रेडियो, टेलीविज़न, सिनेमा, पोस्टर्स, दीवालेखन, यातायात विज्ञापन, आकषलेखन विज्ञापन आदि विज्ञापन के माध्यम कहलाते है।
आखिरकार विज्ञापन का मुख्य उदेश्य क्या है?
विज्ञापन का उदेश्य है की उसके विज्ञापन को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जाए। यह तभी मुमकिन है जब विज्ञापन को लोगों की सवंदनाये और भावनाओं से जोड़ दिया जाए। विज्ञापन का पहला सिद्वान्त ही यही है की विज्ञापन लोगों के दिमाग़ में ठहर जानी चाहिए। सांप्रत समय में अंग्रेजी भाषा को वैश्विक भाषा का दरज्जा दिया जाता है।
पर क्या अंग्रेजी भाषा को हर एक भारतीय समज सकता है?
हमारे भारत देश में अनपढ़ जनसमूह भी है जो अंग्रेजी को नाही लिख और बोल सकते है, और नाही समज सकते है। पर हिन्दी एक ऐसी भाषा है जिसे ये अनपढ़ जनसमूह समज सकते है।और यही कारण रहा है की विज्ञापन में हिन्दी भाषा का व्यापक अनुप्रयोग किया जाता है।
क्या हिन्दी भाषा का विज्ञापन में पहले से ही वर्चस्व रहा है?
आज किसी भी अख़बार में देखा जाए तो उनमे चयन सामग्री से कही ज्यादा विज्ञापन नजर आते है। यही विज्ञापन पहले पत्र पत्रिकाओं को पलट कर देखो तो नजर आया करते थे। आजकल तो टेलीविज़न में प्रसारित कार्यकमो में से ज्यादा विज्ञापन देखने को मिलता है। जिस तरह से विज्ञापन के माध्यम में परिवर्तन हुये है, उसी तरह हिन्दी भाषा के अनुप्रयोग में भी अनेकविध परिवर्तन दिखाय देते है। अब बात करते है किस तरह से विभिन्न समय के अनुसार हिन्दी भाषा का विज्ञापन में अनुप्रयोग किया गया है और सांप्रत समय में भी किस तरह हिन्दी भाषा का अनुप्रयोग हो रहा है। अगर साप्रंद समय में विज्ञापन में हिन्दी भाषा के अनुप्रयोग का अध्ययन करना है तो वह बीते हुये समय में विज्ञापन में हिन्दी भाषा के अध्ययन के बगर पूर्ण नही हो सकता।
1966 का वह दौर था, जो अंग्रेजी भाषा से प्रभवित था. उस वक्त की कोई भी विज्ञापन क्यूँ ना देखी जाए, उसमे अंग्रेजी भाषा का ही वर्चस्व रहा है। वो चाहे सौन्दर्य प्रसाधनो की हो या फिर निजी जरुरियातो से जुडी कोई भी चीज की विज्ञापन हो। उस वक्त शायद लोगों की सवेंदना अंग्रेजी से जुडी हुयी थी। जैसे ही अंग्रेजी भाषा को वैश्वीकरण से जोड़ा गया उसके साथ ही हिन्दी भाषा का भी महत्व बढ़ता गया है। सांप्रत समय में विज्ञापन मे हिन्दी और अंग्रेजी को सयुंक्त कर हिंगलिश का इस्तेमाल होने लगा है। अमूल और लक्स से लेके ग्लूकोज की विज्ञापन में अंग्रेजी की जगह हिंदी का अनुप्रयोग होने लगा है
अगर बात करें अमूल ब्रांड की जो उसके विज्ञापन की तरकीबों के कारण ख्यातनाम है। जब 1966 जब अमूल ने विज्ञापन की शरुआत की, उस वक्त उसकी जो पहली विज्ञापन थी वो अंग्रेजी में थी। जिसमे लिखा हुआ था,
विज्ञापन बनाने में अमूल का जवाब नहीं! किसी भी विषय पर विज्ञापन बनाने में माहिर अमूल के विज्ञापनों में हास्य का पुट अधिक होता है। साथ में सामाजिक चेतना भी होती है. अमूल की विज्ञापनों में अब अंग्रेजी से ज्यादा हिंगलिश इस्तेमाल होने लगा है। जैसे की...
यह साप्रंद समय में विज्ञापन में हिन्दी भाषा का अनुप्रयोग ही बता रहा की सिर्फ हिन्दी ही ऐसी भाषा है जो लोगों की सवेंदनाओ को छू लेती है।बाहो से बेली तक को अगर फ्रॉम आर्म्स टू बेली कहा जाये तो वह सवेंदना नही आती है जो बाहो से बेली तक में आती है।
ऐसी कही सारी विज्ञापन है, जिसमे अंग्रेजी की साथ हिंदी का अनुप्रयोग किया जाता है ताकि विज्ञापन के ज़रिए अपने उत्पादों को लोकभोग्य बनाया जाये। सांप्रत समय में विज्ञापन में हिंदी का महत्त्व निम्नलिखित विज्ञापन की टैगलाइन से प्रगट हो रहा है।
क्यूँ इस तरह से हमे विज्ञापन में हिंदी भाषा की आवश्यकता है?
अगर यही हिंदी शब्दों को अंग्रेजी भाषा में रुपांतरित किये जाये तो हिंदी शब्द में जो सवेंदना प्रगट होती है और लोकमानस तक पहुँचती है वह नही रहेगी।
सांप्रत समय में विज्ञापन करने वाली ज्यादातर कंपनी विदेशी है, अगर वो चाहे तो अपने उत्पादनो का प्रचार एवं प्रसार अंग्रेजी भाषा में कर सकती है.
लेकिन क्या हर एक उपभोक्ता अंग्रेजी भाषा समज पायेगा?
यही कारण रहा है जिसकी वजह से हिंदी भाषा को बाजार के रूप में उभरती भाषा कहा जाता है। विज्ञापन का कार्य ही है लोको की सवेंदनाओ के साथ गोष्ठी करना। यह वक्त सिर्फ अंग्रेजी भाषा के वैश्वीकरण का नही है पर हिंदी और अंग्रेजी भाषा एकदूसरे के हाथों मे हाथ पिरोकर चल रही है। व्यपक जनसमूह तक विज्ञापन को पहुंचाने के लिए हिंदी भाषा का अनुप्रयोग आवश्यक है।
आज जब हिंदी भाषा के सत्तर वर्ष पूर्ण हुए है और हम देख सकते है की हिंदी की वैश्विक स्थिति काफ़ी बेहतर है। अंग्रेजी और चायना के बाद बोली जाने वाली विश्व की तीसरे स्थान पर आने वाली भाषा हिंदी है। हिंदी भाषा को यह मुकाम पर पहुंचाने मे राजनैतिक नेताओं का बखूबी योगदान रहा है इसके आलावा अगर किसीका योगदान रहा है तो वह है हिंदी सिनेमा, विज्ञापन और मुद्रित माध्यमों का।
पर क्या यह विज्ञापन मे इस्तेमाल होने वाली हिंदी भाषा शुद्ध भाषा है?
परिवर्तित समय के साथ हिंदी भाषा का महत्व भी परिवर्तित होता नजर आ रहा है। पहले की विज्ञापन और सांप्रत समय की विज्ञापन मे हिंदी भाषा के अनुप्रयोग मे विभिन्नता नजर आती है। विज्ञापन मे हिंदी के साथ कई सारी भाषाओ की मिलावट हो रही है पर हिंदी अभी भी सभी भाषाओं मे मध्यस्थ है ओर शायद रहेंगी भी।
सांप्रत समय में विज्ञापन में हिन्दी भाषा का अनुप्रयोग
आज के युग का जो बहुत बड़ा सत्य है वह हिन्दी भाषा के ख्यातनाम कवि 'जयशंकर प्रसाद' की 'कामायनी' प्रस्तुत पंक्तियों में बखूबी प्रगट हुता हुआ दिखाई देता है।
यह नीड़ मनोहर कृतियों का
यह विश्व एक रंगस्थल है
है परम्परा लग रही यहाँ
ठहरा किसमे कितना बल है।
आज का जो दौर है वह विज्ञापन कला से ज्यादा विज्ञापन क्रांति से आक्रांत है। आज के युग हम हमारी कला हो या साहित्य, अगर हम लोगों तक प्रचार और प्रसार के माध्यम से नहीं पहुंचा रहे है तो वह कला होते हुए भी ना होने के बराबर ही है। आज की यह संस्कृति में लोगों को अपने सामर्थ्य और शक्ति से परिचित करना ज्यादा महत्वपूर्ण है। और यही कार्य सिर्फ और सिर्फ विज्ञापन के जरिए ही हो सकता है. विज्ञापन की ढेरों परिभाषाऐं है।
विज्ञापन की परिभाषा
स्टार्च के अनुसार," विज्ञापन प्रायः मुद्रण के रूप में लोगों के सम्मुख प्रस्तुत करता है जिससे की वे उसके अनुसार कार्य करने के लिए प्रेरित हो सके। "
न्यू वर्डाई के अनुसार,
" विज्ञापन का अर्थ किसी वस्तु या तथ्य के सबंध में मुद्रित माध्यम समाचार पत्र, आकशवाणी अथवा ऐसे ही किसी अन्य माध्यम से जानकारी देना, विक्रय बढ़ाना अथवा जनता का ध्यान आकृष्ट करना है। "
विज्ञापन की विभिन्न परिभाओ के जरिए यही बात स्पष्ट होती है की विज्ञापन उत्पादन का विक्रय बढ़ाने के लिए और प्रचार-प्रसार के लिए ही है।
विज्ञापन का उद्ग्म और व्यापकता
हिन्दी भाषा का व्याप बढ़ाने में बोलीवूड सिनेमा का महत्वपूर्ण योगदान रहा है। अब प्रश्न होता है शुद्ध हिन्दी भाषा का। क्या हमारी बोलीवूड की हिन्दी भाषा शुद्ध हिन्दी है? नहीं, यह वह हिन्दी भाषा है जिसमे अंग्रेजी हो या पंजाबी या फ़ारसी, ऐसी कई भाषाऐं है जो हिन्दी के साथ मिल चुकी है. पर अभी भी हमारी राजभाषा ही मध्यस्थ बिंदु है, जिसके ज़रिए अन्य भाषाये अपना स्थान बना रही है।
विज्ञापन के माध्यम
विज्ञापन माध्यम एक ऐसा साधन है, जिसके जरिए निर्माता अपनी वस्तुओं के बारे में उपभक्ता को जानकारी उपलभ्द्ध करवाता है। समाचारपत्र, पत्रिकाएँ, रेडियो, टेलीविज़न, सिनेमा, पोस्टर्स, दीवालेखन, यातायात विज्ञापन, आकषलेखन विज्ञापन आदि विज्ञापन के माध्यम कहलाते है।
विज्ञापन का उदेश्य
आखिरकार विज्ञापन का मुख्य उदेश्य क्या है?
विज्ञापन का उदेश्य है की उसके विज्ञापन को ज्यादा से ज्यादा लोगों तक पहुंचाया जाए। यह तभी मुमकिन है जब विज्ञापन को लोगों की सवंदनाये और भावनाओं से जोड़ दिया जाए। विज्ञापन का पहला सिद्वान्त ही यही है की विज्ञापन लोगों के दिमाग़ में ठहर जानी चाहिए। सांप्रत समय में अंग्रेजी भाषा को वैश्विक भाषा का दरज्जा दिया जाता है।
पर क्या अंग्रेजी भाषा को हर एक भारतीय समज सकता है?
हमारे भारत देश में अनपढ़ जनसमूह भी है जो अंग्रेजी को नाही लिख और बोल सकते है, और नाही समज सकते है। पर हिन्दी एक ऐसी भाषा है जिसे ये अनपढ़ जनसमूह समज सकते है।और यही कारण रहा है की विज्ञापन में हिन्दी भाषा का व्यापक अनुप्रयोग किया जाता है।
क्या हिन्दी भाषा का विज्ञापन में पहले से ही वर्चस्व रहा है?
विज्ञापन में हिन्दी भाषा के अनुप्रयोग के परिवर्तित स्वरूप
आज किसी भी अख़बार में देखा जाए तो उनमे चयन सामग्री से कही ज्यादा विज्ञापन नजर आते है। यही विज्ञापन पहले पत्र पत्रिकाओं को पलट कर देखो तो नजर आया करते थे। आजकल तो टेलीविज़न में प्रसारित कार्यकमो में से ज्यादा विज्ञापन देखने को मिलता है। जिस तरह से विज्ञापन के माध्यम में परिवर्तन हुये है, उसी तरह हिन्दी भाषा के अनुप्रयोग में भी अनेकविध परिवर्तन दिखाय देते है। अब बात करते है किस तरह से विभिन्न समय के अनुसार हिन्दी भाषा का विज्ञापन में अनुप्रयोग किया गया है और सांप्रत समय में भी किस तरह हिन्दी भाषा का अनुप्रयोग हो रहा है। अगर साप्रंद समय में विज्ञापन में हिन्दी भाषा के अनुप्रयोग का अध्ययन करना है तो वह बीते हुये समय में विज्ञापन में हिन्दी भाषा के अध्ययन के बगर पूर्ण नही हो सकता।
1966 का वह दौर था, जो अंग्रेजी भाषा से प्रभवित था. उस वक्त की कोई भी विज्ञापन क्यूँ ना देखी जाए, उसमे अंग्रेजी भाषा का ही वर्चस्व रहा है। वो चाहे सौन्दर्य प्रसाधनो की हो या फिर निजी जरुरियातो से जुडी कोई भी चीज की विज्ञापन हो। उस वक्त शायद लोगों की सवेंदना अंग्रेजी से जुडी हुयी थी। जैसे ही अंग्रेजी भाषा को वैश्वीकरण से जोड़ा गया उसके साथ ही हिन्दी भाषा का भी महत्व बढ़ता गया है। सांप्रत समय में विज्ञापन मे हिन्दी और अंग्रेजी को सयुंक्त कर हिंगलिश का इस्तेमाल होने लगा है। अमूल और लक्स से लेके ग्लूकोज की विज्ञापन में अंग्रेजी की जगह हिंदी का अनुप्रयोग होने लगा है
अगर बात करें अमूल ब्रांड की जो उसके विज्ञापन की तरकीबों के कारण ख्यातनाम है। जब 1966 जब अमूल ने विज्ञापन की शरुआत की, उस वक्त उसकी जो पहली विज्ञापन थी वो अंग्रेजी में थी। जिसमे लिखा हुआ था,
Give us this day
Our daily bread: with amul butter
Utterly butterly delicious.
विज्ञापन बनाने में अमूल का जवाब नहीं! किसी भी विषय पर विज्ञापन बनाने में माहिर अमूल के विज्ञापनों में हास्य का पुट अधिक होता है। साथ में सामाजिक चेतना भी होती है. अमूल की विज्ञापनों में अब अंग्रेजी से ज्यादा हिंगलिश इस्तेमाल होने लगा है। जैसे की...
बाहो से बेली तक...Amul Butter
तारीफ करू क्या इसकी? Amul can't be traded!
मोदिजीत Amul Taste of India
डिश विश Amul Butter Vutter
यह साप्रंद समय में विज्ञापन में हिन्दी भाषा का अनुप्रयोग ही बता रहा की सिर्फ हिन्दी ही ऐसी भाषा है जो लोगों की सवेंदनाओ को छू लेती है।बाहो से बेली तक को अगर फ्रॉम आर्म्स टू बेली कहा जाये तो वह सवेंदना नही आती है जो बाहो से बेली तक में आती है।
ऐसी कही सारी विज्ञापन है, जिसमे अंग्रेजी की साथ हिंदी का अनुप्रयोग किया जाता है ताकि विज्ञापन के ज़रिए अपने उत्पादों को लोकभोग्य बनाया जाये। सांप्रत समय में विज्ञापन में हिंदी का महत्त्व निम्नलिखित विज्ञापन की टैगलाइन से प्रगट हो रहा है।
Amul: बिगबॉस ऑफ़ मख्खन
Domino's : हंग्री क्या?
Close up : क्या आप क्लोज अप करते हैं?
Lux: यानि शहद जैसा निखार
Glucone D : जीत का दम हर दिन
Fair & Lovely : मंजिल साफ देखे
Kurkure : टेढ़ा है पर मेरा है
Real families unreal masti
Kinder joy : हर किंडर जॉय में कुछ खास है
क्यूँ इस तरह से हमे विज्ञापन में हिंदी भाषा की आवश्यकता है?
अगर यही हिंदी शब्दों को अंग्रेजी भाषा में रुपांतरित किये जाये तो हिंदी शब्द में जो सवेंदना प्रगट होती है और लोकमानस तक पहुँचती है वह नही रहेगी।
सांप्रत समय में विज्ञापन करने वाली ज्यादातर कंपनी विदेशी है, अगर वो चाहे तो अपने उत्पादनो का प्रचार एवं प्रसार अंग्रेजी भाषा में कर सकती है.
लेकिन क्या हर एक उपभोक्ता अंग्रेजी भाषा समज पायेगा?
यही कारण रहा है जिसकी वजह से हिंदी भाषा को बाजार के रूप में उभरती भाषा कहा जाता है। विज्ञापन का कार्य ही है लोको की सवेंदनाओ के साथ गोष्ठी करना। यह वक्त सिर्फ अंग्रेजी भाषा के वैश्वीकरण का नही है पर हिंदी और अंग्रेजी भाषा एकदूसरे के हाथों मे हाथ पिरोकर चल रही है। व्यपक जनसमूह तक विज्ञापन को पहुंचाने के लिए हिंदी भाषा का अनुप्रयोग आवश्यक है।
आज जब हिंदी भाषा के सत्तर वर्ष पूर्ण हुए है और हम देख सकते है की हिंदी की वैश्विक स्थिति काफ़ी बेहतर है। अंग्रेजी और चायना के बाद बोली जाने वाली विश्व की तीसरे स्थान पर आने वाली भाषा हिंदी है। हिंदी भाषा को यह मुकाम पर पहुंचाने मे राजनैतिक नेताओं का बखूबी योगदान रहा है इसके आलावा अगर किसीका योगदान रहा है तो वह है हिंदी सिनेमा, विज्ञापन और मुद्रित माध्यमों का।
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